सफर - मौत से मौत तक….(ep-32)
समीर शाम को इशानी और पापा को लेने घर आया, इशानी का अभी तक मेकप चालू था…. जैसे ही समीर कमरे में पहुंचा तो झल्लाते हुए उठी और बेड में रखी गाउन समीर को दिखाते हुए बोली- "इसमे क्या खराबी है…."
"तुमने अभी तक डिसाइड नही किया कि क्या पहनना है…मुझे लगा तुम तैयार हो चुकी होंगी" समीर बोला।
इशानी नाराज लफ्जो में चिल्लायी- "हो गयी थी तैयार में लेकिन बूढ़े ने……सॉरी मेरा मतलब आपके पापा ने उतरवा दी….अभी पूरी तरह गयी नही उनकी टोकने की आदत"
"लेकिन क्यो?.…… क्या कारण बताया…" समीर ने सवाल किया।
"बोलते है की ये छोटी सी है या इसको बदलो या इसके नीचे कोई सलवार भी पहनो, अब मिनी स्कर्ट है, फैशन है….मैं पहन रही हूँ, इनको क्यो तकलीफ हो रही है" इशानी बोली।
"तो अब! जीन्स टॉप पहनकर आ रही हो क्या" समीर बोला।
"जीन्स टॉप……कैसी लगूंगी गवार सी….जीन्स टॉप तो रोज ही पहनती हूँ" इशानी बोली।
"जो पहनना जल्दी पहनो यार, देर हो रही है" समीर बोला।
इशानी ने अपनी नई लांग गाउन निकालते हुए कहा- "अब इसे पहनना पड़ेगा….मैं पता नही कैसी लगूँगी इसमे"
"बहुत अच्छी लगोगी….तुम मुझे हर हाल अच्छी लगती हो….कुछ भी पहनो चाहे" समीर बोला।
"सिर्फ तुमने ही नही देखना है, पार्टी में और लोग भी होंगे" इशानी बोली।
"औरों को क्या दिखाना….मैं तो चाहता ही नही मेरी चांद को कोई और भी देखे" समीर इशानी को अपनी तरफ खींचते हुए बोला
"तो मैक्सी पहनकर आ जाती हूँ, या लोअर और वो टॉप डाल लूँ जिससे पुष्पाकली आजकल पोछा लगाती है" इशानी ने मुंह टेड़ा करते हुए कहा।
"ऐसे नाराज नही होते, जल्दी से अपना मूड ठीक करो और तैयार होकर आ जाओ, मैं देखकर आता हूँ पापा तैयार हुआ भी या नही" समीर ने कहा।
समीर बाहर चला आया और पापा के कमरे में जाकर देखा… पापा ने वो कोट पेंट पहन रखा था जो समीर ने अपनी शादी पर उनके लिए सिलवाई थी। और आज तो उसमे टाई भी बांधने में लगे हुए थे, हालांकि उनको बांधना आ नही रह था, बहुत कोशिश कर रहे थे,
समीर उनके करीब गया और बोला- "पापा! ये क्या पहन लिया आपने….हम छोटी सी पार्टी में जा रहे है, किसी की शादी थोड़ी है….छोटे छोटे फंक्शन में इसे पहनेंगे तो किसी बड़े प्रोग्राम में क्या पहनोगे"
नंदू ने समीर की तरफ देखा और उसके सवाल को नजरअंदाज करते हुए मुस्कराते हुए बोला- "ये फंदे को कैसे डालते है गले मे, मुझसे नही लग रहा फंदा, तुम लगा दो ना"
समीर ने देखा तो टाई की ऐसी तैसी फेर रखी थी, समीर ने हल्के हाथों से टाई को प्रेस करते हुए नंदू के गले मे बांध दिया और कहा- "लो ये हो गया सेट….अब आप आ जाओ बाहर, मैं देखकर आता हूँ मैडम को कितना घंटा लगेगा अभी"
नंदू बाहर हॉल में आकर बैठ गया, और इशानी भी थोड़ी देर में तैयार हो गयी। और तीनों पार्टी के लिए चल पड़े….आगे की शीट पर समीर और इशानी, पीछे की शीट पर कहने को तो नंदू अकेले बैठा था, लेकिन उसके साथ नंदू अंकल भी बैठे थे।
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"सालगिरह मुबारक हो मित्तल साहब.….और भाभी जी आपको भी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी की सुभकामनाये" कहते हुए समीर ने एक गुलदस्ता उस शादीशुदा जोड़े को पकड़ाया जो कि आज के पार्टी की वजह थे।
"हेलो..…मिसिज़ मित्तल कांग्रेचुलेशन फ़ॉर योर फर्स्ट एनिवर्सरी…." कहते हुए इशानी ने मित्तल की बीवी को गले से लगाया, और उसके बाद हाथ मिलाते हुए समीर के उम्र के लड़के आरव मित्तल से भी हाथ मिलाया- "कांग्रेचुलेशन मेन"
हाथ को पकड़कर थोड़ी देर तक इशानी को निहारने के बाद मित्तल साहब बोल पड़े- "थेँक्स….एंड यु आर लुकिंग सो बीयूटीफुल…
इशानी ने धीरे से हाथ छुड़ाया और कहा- "थेँक्स सो मच्"
तभी मिसिज़ मित्तल जिसका नाम नव्या था उसकी सहेलियों ने प्रवेश किया और नव्या अपने आरव को खींचते हुए दूसरी तरफ ले गयी।
इशानी ने समीर का हाथ पकड़ा और आगे बढ़ने लगे, नंदू को कुछ समझ नही आ रहा था कि वो कहाँ जाए क्या करे। इसलिये वो समीर और इशानी जिधर जाते उधर को चला जाता,उनके पीछे पीछे चल रहा था।
थोड़ी इधर उधर घूमने के बाद इशानी ने नॉट किया कि बूढ़ा पीछे पीछे चल रहा है तो उसने समीर से कहा- "इनको बोलो एक जगह बैठ जाओ….ऐसे पीछे पीछे कब तक चलेंगे।"
समीर ने इशानी की बात सुनी और पीछे मुड़कर देखा, तो नंदू चाय वाले काउंटर पर खड़े होकर चाय माँग रहे थे।
समीर उनके पास गया और बोला- "पापा आप यहाँ क्यो खड़े हो,चाय तुम्हे टेबल ओर सर्व किया जाएगा, चाय ही नही उधर खाने पीने की सारी चीजें मिलेंगी, आप उधर बैठ जाओ"
"क्या….????" नंदू ने डीजे के शोर की वजह से कुछ सुना नही, वो बड़ी बड़ी आंखों को फैलाते हुए समीर के मुंह के पास कान लाकर पूछते है।
"मैने कहा, ये वी आई पी पार्टी है, यहाँ चाय के पास नही जाते,चाय खुद चलकर आपके पास आएगा" समीर थोड़ा जोर से बोला और पापा को पास में लगे कुर्सी पर किसी अजनबी आदमी के पास छोड़ गया। वो अजनबी नंदू के लिए था, समीर उसे जानता था,
" और कैसे हो शर्मा जी??…." समीर ने उस शख्स से पूछा।
"बिंदास…………" शर्मा जी ने कहा।
समीर पापा को शर्मा जी के साथ बैठने को बोलकर चले गया। शर्मा जी भी अधेड़ उम्र के थे, नंदू से तीन चार साल कम होगी उम्र, लेकिन चेहरे में बारह बजे थे, हाथ मे जाम लिए, नंदू की तरफ देखकर मंद मुस्कराया और गिलाश को धीरे से सामने रखे व्हिस्की के बोतल पर खनक बजाते हुए बोला- "लोगे…..थोड़ा सा"
"जी नही….मैं पीता नही हूँ" नंदू बोला।
शर्मा जी नशीली आवाज में बोले- "बन जाओगे पिता भी,जरूरी थोड़ी पीने के लिए पिता होना जरूरी है,मेरी तो शादी ही नही हुई अभी,मैं कौन सा पिता हूँ…वैसे मेरी शादी नही हुई इसलिये बाप नही बना, लेकिन तुम्हारी तो उम्र हो गयी है डियर….या तुम भी कुंवारे हो"
बड़ी मुश्किल से शर्मा जी चुप हुए तो नंदू ने उसे समझातेहुए कहा- "जी मेरी शादी हो गयी है, और मेरा एक लड़का भी है"
"लेकिन अभी तो तुम बोल रहे थे कि मैं पिता नही हूँ…." शर्मा जी बोले।
"पिता नही, पीता कहा था मैंने, मेरा मतलब था मैं नशा नही करता" नंदू ने कहा।
"अरे कैसे आदमी हो… बिना पिये जीते कैसे हो….दो दिन की जिंदगी है, ऐश करनी चाहिए मेरी तरह" शर्मा ने अपने मूंछो को मरोड़ते हुए कहा।
"जी अच्छी बात है……आप करो ऐश….हम चाय पीकर ही खुश है" नंदू मुस्कराते हुए बोला।
"लेकिन मन मे बहुत टेंशन है तुम्हारे….परेशान से लग रहे हो।……" शर्मा ने कहा।
"जी मुझे कोई दिक्कत परेशानी नही है।……मैं खुश हूं" नंदू बोला।
"देखो हर गम की दवा सिर्फ यही है, अकेलापन दुऊऊऊऊर…….कर देगा……गली गली में मशहूऊऊऊऊर कर देगा" लंबी सी लय बनाते हुए शर्मा जी बोले तो नंदू को अपने पापा की कही बात याद आयी- "मैं शराब नही पीता हूँ, शराब पीती है मुझे….दुनिया भर की टेंशन एक पल के लिए ही लेकिन दूऊऊऊर हो जाते है……लेकिन बेटा….तू इस गंदी चीज़ को कभी नही पियेगा……इतनी टेंशन कभी मत लेना कि तुझे इसकी जरूरत पड़े….ये नंगा कर देगी तुझे….मेरी तरह….कहीं का नही छोड़ेगी" चिंतामणि ने उस दिन छोटे नंदू से कहा।
"तो फिर पीते क्यो हो….छोड़ क्यो नही देते" छोटे नंदू ने बाबूजी से कहा।
"मैं रोज छोड़ना चाहता हूँ, पर ये कमबख्त मुझे नही छोड़ती…." चिंतामणि ने कहा।
"कहाँ खो गए जनाब……" शर्मा ने नंदू से कहा
नंदू ख्यालो से बाहर आया तब तक शर्मा ने एक छोटा सा पेग और बनाया हुआ था, और टेबल पर दो पेग रखे थे, एक अपने लिए, एक नंदू के लिए।
"माफ कीजिये। मैं एक घूंट भी नही पी सकता…." नंदू बोला।
"क्या बात करते हो मित्रवर। इन पार्टियों में तो महिलाएं भी पेग लगाती है, और आप आदमी होकर भी….वो देखिए…." शर्मा ने अंगुली से इशारा किया….नंदू की नजर उसकी अंगुली के इशारे की तरफ पड़ी तो वहाँ एक आदमी और एक औरत एक साथ बैठे थे, आदमी ने एक अपने और अपनी मिसिज़ दोनो के लिए पेग बनाया और फिर दोनो ने एक दूसरे के कांच के गिलास को टक्कर मारी और एक घूंट घूंट कर पीने लगे।
फिर नंदू ने अपने समीर की तरफ नजर घुमायी वो तो नाचने में व्यस्त था, आरव और नव्या एक जोड़े में थे, और उनके आसपास समीर इशानी की तरह और भी बहुत जोड़ियां लव कपल की तरह डान्स कर रहे थे।
तेरा मेरा रिश्ता है कैसा
एक पल दूर गवारा नहीं
तेरे लिए हर रोज़ हैं जीते
तुझ को दिया मेरा वक़्त सभी
कोई लम्हा मेरा ना हो तेरे बिना
हर सांस पे नाम तेरा..
क्यूंकि तुम ही हो
अब तुम ही हो
ज़िन्दगी अब तुम ही हो
चैन भी, मेरा दर्द भी
मेरी आशिक़ी अब तुम ही हो
तुम ही हो.. तुम ही हो..
नंदू एक बार समीर और इशानी को देखता, एक बार व्हिस्की के पेग को देखता, और एक बार याद करता समीर और इशानी के दुर्व्यवहार को, आजकल समीर का इशानी के कारण नंदू से जो कहा सुनी हो जाती थी वो भी रह रहकर नंदू को याद आ ही जाता था… अभी तक पीने का कोई विचार नही था, तभी उसने देखा थोड़ी देर पहले पेग लगाने वाली उस मियां बीबी के जोड़े ने भी चार पेग के बाद कपल डान्स का लुत्फ उठाना शुरु कर दिया था। एक अलग ही मस्ती में दोनो झूम रहे थे….
तेरे लिए ही जिया मैं
खुद को जो यूँ दे दिया है
तेरी वफ़ा ने मुझको संभाला
सारे गमो को दिल से निकाला
तेरे साथ मेरा है नसीब जुडा
तुझे पा के अधुरा ना रहा
हम्म……तुम ही हो.. तुम ही हो..
अब तक शर्मा जी दो पेग और लगा चुके थे,मगर नंदू ने अभी भी नही पिया….उसे बचपन से ही नफरत थी शराब से, अगर शराब से दोस्ती होती तो समीर को पढ़ा लिखा नही पाता, ना ही अपने सिर की जिम्मेदारियों को निभा पाता। लेकिन आज तो फ्री की मिल रही थी,कौन सा रोज पियूँगा……, एक बार चेक तो कर लूं की ये होती कैसी है" नंदू के मन मे ख्याल आया।
लेकिन अंदर से आवाज भी आई- "नही……नही! तू ऐसा नही करेगा।"
लेकिन पार्टी की शोर और म्युज़िक की मस्ती ने नंदू के अंदर की आवाज को दबा ही दी थी, और उसने गिलास को हाथ मे थाम लिया।
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कहानी जारी है
Niraj Pandey
07-Oct-2021 02:03 PM
बहुत खूब
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Shalini Sharma
01-Oct-2021 01:12 PM
Nice
Reply
Aliya khan
29-Sep-2021 07:19 PM
बेहतरीन पार्ट
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